कहां हो तुम!

इंस्टिट्यूट का आखिरी दिन... कॉन्वोकेशन में शामिल सभी 30 स्टुडेंट...स्टुडेंट नहीं जनाब जर्नलिस्ट कहिए...बहुत खुश थे...कॉन्वोकेशन की पार्टी में कई अखबार के एडिटर...बड़े पत्रकार...नेता...अधिकारी...और जो पत्रकार दिल्ली के थे…वे अपने दोस्त...परिवार के संग आए थे...सभी एक दूसरे से मिल रहे थे...नाच गा रहे थे...खा पी रहे थे...
मैं भी किसी से बात करने में मशगूल था...कि अलका आयी और बोली, “हाय हितेंद्र, इससे मिलो...मेरी कजिन तान्या...फाइनल ईयर में है”
घर पर अक्सर तुम्हारे बारे में बात होती थी...तो ये तुमसे मिलना चाहती थी...आखिर क्या है हितेंद्र में जो मैं इतनी तारीफ करती हूं...लो आज खुद मिल लो...इतना कह कर अलका...तान्या का मेरे पास छोड़ दूसरे लोगों से मिलने जुलने लगी...
तान्या! जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आयी हो...खिला खिला चेहरा...एक अलग ही लालिमा लिए हुए...जैसे दूध में सिंदूर मिला दिया गया हो...

तान्या से मिलने के बाद औरों से क्या मिलता...कोई उससा दूसरा ना लगा...कुछ कुछ होने सा लगा...एक पल भी नहीं हुआ था कि ऐसा लगने लगा जैसे बरसों से जानता हूं...इतना अपनापन हो गया...होता क्यों नहीं...वो है ही ऐसी...
खत्म होने तक साथ साथ रहे...न जाने क्या क्या बातें हुईं...बस हंसते रहे और बतियाते रहे...भारी मन से अलका के साथ से विदा किया...लग रहा था...कुछ देर और साथ रह जाते तो कितना अच्छा होता...तान्या अपने घर चली गयी...लेकिन मेरे दिलो दिमाग पर छा गयी...अब सिर्फ तान्या तान्या ही रह गयी...सोने उठने खाने पीने...घूमने फिरने से लेकर पढ़ने लिखने तक...तान्या ही तान्या छा गयी...एक अलग ही रोमांच छा गया...किसी तरह एक दिन गुजरा...अगले दिन हिम्मत करके फोन किया...और तय हुआ...चाणक्य में मिलते हैं...खुशी का ठिकाना न रहा...मिलने की तैयारी होने लगी...पहली बार खुद को बार बार आइने के सामने देख रहा था...कभी इधर से कभी उधर से...ठीक, लग तो रहा हूं...बार बार घडी को भी देख रहा था...मन में सोच रहा था...ये कहूंगा...वो कहूंगा...मिलन की उस घड़ी के लिए बेताब...मैं तय समय से आधा घंटा पहले ही चाणक्य पहुंच गया...लेकिन ये क्या तान्या तो पहले से ही पहुंची हुई थी...आग इधर ही नहीं...उधर भी धधक रही थी...घंटों बैठे रहे...एक दूसरे को देखते...मुस्कुराते रहे...बोलना कम निहारना ज्यादा हो रहा था...फिर उस दिन के बाद मुलाकातों का सिलसिला निकल पड़ा...फिर मैं भी न्यूज़ चैनल में लग गया...और मुलाकात कम फोन पर बातें ज्यादा होने लगीं...इसी बीच तान्या का सेलेक्शन आईआईएम बैंगलोर के लिए हो गया...उसे दिल्ली से दूर जाना पड़ा...वीकेंड पर कई बार मिलने बैंगलोर भी गया...दो साल बाद उसका सेलेक्शन एक एमएनसी में हो गया...और उसे आस्ट्रेलिया जाना पड़ा..बात होती रही...लेकिन यहां मैं भी धीरे धीरे काम में व्यस्त होता गया...वो भी अपने काम में व्यस्त होती गयी...रोज रोज की बजाय बातें वीकेंड पर होने लगीं...फिर महीने में एक दो बार...कई बार ऐसा होता...यहां मैं जगा होता तो वहां वो सो रही होती...और जब वो जगी होती तो यहां मैं सोया रहता...
टाइम चेंज...सब कुछ चेंज...नजर से दूरी जिगर से दूरी बन गयी...साल भर हो गया मिले हुए...ये दिल ही जानता है कि उसके बिना कैसे रह रहा हूं...
सच में तान्या बहुत मिस कर रहा हूं मैं तुम्हें...

9 comments:

  1. अरे वाह! आपके पास तो ढेरों कहानियां हैं...और कितनी है खजाने में...

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  2. अरे वाह..क्या दर्द साझा किया दोस्त। इतनी बातें की तान्या को बता तो देते। अलग अलग टाइम ज़ोन में सोने जागने से इश्क कम नहीं होता। या फिर ऐसा भी होता है कई बार। दोस्ती के अहसासों के बीच कभी कभी इश्क की धड़कनें भरम पालने लगती हैं। उनके सहारे क्यों।

    अच्छी कोशिश है...लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि यहां सिर्फ बिछड़े मन की खुली बातें होंगी। किसी मिलन की दास्तान भी लिखना।

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  3. जिन्दगी यूँ ही रंग दिखाती है,

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  4. अगर प्यार है तो कम नहीं होगा....दोस्त .....

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  5. खूब सूरत है ये ब्लाग बधाईयां

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  6. वाह-वाह कमाल कर रहे हैं हितेंद्रजी.

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  7. कहां हो तुम! ...ये आज भी है. और आपके दिल में है. बधाई मित्र.

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  8. मेरी पूरी सहानुभूति आपके साथ है... लेकिन जरा भाभी जी का मोबाइल नंबर तो दीजिए.

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  9. इतनी अच्छी कहानी देने के लिए आपका आभार ...............................

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