बुलेटिन ऑन एयर होने का समय हो गया था...फाइनल टच देने में लगा था कि फोन की घंटी बजी... रिसेप्शन से फोन था... “आप से मिलने एक लड़की आयी है...” “बस दो मिनट में आया” बोलकर काम में लग गया...भूल गया और आधे घंटे बाद जब फिर फोन की घंटी बजी उससे मिलने पहुंचा...देखते ही अचानक बोल पड़ा... “सुभान अल्लाह !!!” बला की खूबसूरत...जैसे खुदा ने फुरसत में बनाया हो...खुद अपने हाथों से...एक पल के लिए मैं कहीं और खो गया...और एक टक उसको देखता रहा...वह भी शर्मा गयी...मेरी भी कही जाय तो वही हालत...दोनो एक दूसरे को निहार रहे थे...दुनिया को भूल गये...खामोशी तोड़ती हुई वह बोली... “मैं मोना...फोन पर आप से बात हुई थी” “अच्छा-अच्छा...कैसी हैं आप?, ये वाक्य मन में तो आया लेकिन जुबान पे नहीं, आता भी कैसे...जब नजर काम करती है...तो जुबां अपने आप ठहर जाती है... “फाइन...” यह भी बोला या सुना नहीं गया...बस महसूस हुआ... तभी वह अपना रिज्यूमे निकाल कर दिखाने लगी...और पढ़ाई-लिखाई काम काज के बारे में बातें होती रहीं...वह बोलती जा रही थी...और मैं सुनता जा रहा था...मेरा ध्यान मोना की आवाज से कहीं ज्यादा उसके चेहरे पर टिक गया था...मैं उसकी हर बात पर बस हां हां करता जा रहा था...लेकिन ध्यान तो एक ही जगह था...एकदम से उसके रूप माधुर्य में खो सा गया…एक घंटा कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला...फिर मिलने और फोन करने की बात हुई...वो मेन गेट से बाहर निकली...और मैं न्यूज रूम की ओर...न्यूज रूम में आने के बाद भी...जैसे हम वहीं थे...रिसेप्शन पर...एक दूसरे को निहारते हुए...और कहीं मन नहीं लग रहा था...बस मोना ही मोना छायी हुई थी...तब पता चला कि एक नजर में भी प्यार होता है...जब वो दिल में छा गयी तो फिर फोन पर बात करने...चैट...मिलने जुलने का सिलसिला भी शुरू हो गया कई बार मिले...लगता ही नहीं कि हम दोनो कभी अलग रह पाएंगे...उसके बिना दिन और रात काटे नहीं कटते...अपने बॉस से मिलकर उसके लिए नौकरी की बात भी कर ली...तय हो गया कि उसको रख लेंगे...लेकिन दफ्तर में ऐसा उलटफेर हुआ कि बॉस ही बॉस नहीं रहे...सब होते होते रुक गया...इसी बीच मुंबई से उसे एक बढ़िया ऑफर मिला...एक बड़े चैनल से...
आखिर दिल्ली में कब तक खाली रहती...कर ली ज्वाइन...चली गयी मुंबई...और फिर शुरू हो गया मीडिया की नौकरी में सांस न लेने वाले काम का दौर...
उसे तीन साल की ट्रेनिंग पर लंदन भेज दिया गया...दो शहरों के बीच की दूरी...जैसे दिल की दूरी बनती गयी...दोनो एक दूसरे से चाह कर भी नहीं मिल पाते...ऐसे में जबकि एक पल की दूरी भी नागवार गुजरे...तीन साल...Mona, I miss you a lot.
आखिर दिल्ली में कब तक खाली रहती...कर ली ज्वाइन...चली गयी मुंबई...और फिर शुरू हो गया मीडिया की नौकरी में सांस न लेने वाले काम का दौर...
उसे तीन साल की ट्रेनिंग पर लंदन भेज दिया गया...दो शहरों के बीच की दूरी...जैसे दिल की दूरी बनती गयी...दोनो एक दूसरे से चाह कर भी नहीं मिल पाते...ऐसे में जबकि एक पल की दूरी भी नागवार गुजरे...तीन साल...Mona, I miss you a lot.
ये क्या ब्लॉग है भैया...और क्या क्या पढ़ने को मिलेगा...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...कम से कम एक जगह तो मिली जहां मन की बात रखी जा सके...मैं जल्दी ही अपनी स्टोरी भेज रहा हूं...
ReplyDeleteGood efforts. Happy Valentine's day to you all in advance. Could you publish ny story anonymously. I have several stories to my own, but you know...I'm retired and with entire family. Anyway, good job. Keep it up.
ReplyDeleteप्यार की दुनिया में इस नये रंग और कुछ जानी पहचानी खुशबू का इस्तक़बाल है,उम्मीद है कि ये मंच प्यार के दीवानों और प्यार के मारों दोनों को सुकून देगा, प्रेमचंद कहते थे प्यार बिना तर्क का तर्क है, रवींद्रनाथ ठाकुर कहते थे प्यार एक ऐसा रहस्य है जिसे प्यार से ही समझा जा सकता है, दरअसल ये समझ और एहसास से भी परे बस डूब जाने का मसला है, जहां आप नहीं होते वहां प्यार होता है, फिर भी कहना-सुनना तो पड़ता ही है, अल्फाज़ों का सहारा तो लेना पड़ता है, तो कहने-सुनने का मौका सामने हैं, उठाईए यादों की कलम और लिख डालिए अपने अरमान, अपने एहसास अपनी उदासी और अपनी आस, बस इतना भर ख्याल रहे कि प्यार की मर्यादा बनी रहे इसकी गरिमा कमने न पाए..फिर होगी मुलाकात अलविदा
ReplyDeleteश्याम किशोर
अच्छा मंच है, कहने को काफी कुछ है...कुछ अपनी है, कुछ सुनी सुनाई और आंखों देखी है, समय मिलते ही विस्तार से लिखूंगा
ReplyDeleteअच्छा मंच है, कहने को काफी कुछ है, कुछ आप बीती है तो कुछ सुनी सुनाई और आंखों देखी, समय मिलता हूं विस्तार से लिखूंगा और लगातार लिखूंगा
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा कहानी पढ़कर...ऐसा लगा जैसे ये घटना आपके साथ नहीं मेरे साथ हो रही है। कहने का मतलब ये नहीं की कहानीकार की जगह मैं खुद को रखना चाहता है...दरअसल इस कहानी में मुझे इतना दम दिखा...जैसे मैं टीवी पर इसे लाइव देख रहा हूं। वाकई मैंने इस कहनी को पढ़ने के बाद गहराई से महसूस किया। बहरहाल अपनी जिंदगी के पहलू को उड़ेलने का अच्छा मौका है। जब हमारी कोई न सुने तो उसे यहां उतार दिया जाए...यही बेहतर है।
ReplyDeleteविजय कुमार शर्मा
समय
vijayksharma76@rediffmail.com
विजयजी कहानी आपको पसंद आयी यह खुशी की बात है...अब आप कब अपनी कहानी भेज रहे हैं...जल्दी कीजिए...एक कहानी और अपनी वैलेंटाइन के नाम एक चिट्ठी भी भेज दीजिए...
ReplyDeleteमॉडरेटर, हेलो गर्लफ्रेंड
very good
ReplyDeleteआपकी साधना पूरी हो- शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteमैं तो आपको सिर्फ मीडिया पर्सन ही समझ रहा था लेकिन अब मेरी समझ में आया कि आप एक अच्छे उपन्यासकार भी हैं.
ReplyDeleteइसे पढ़ने के बाद यह बात भी साफ हो गयी कि जिसे आपकी समझदार आंखें पसंद कर लेती हैं आपका मन उसे लम्बे समय तक अपना दोस्त भी बना लेता है. साथ ही आप एक अच्छे मददगार भी हैं.
कुछ लोग समाज में ऐसे होते हैं कि सामने पड़ने पर चाहत का दिखावा तो करते हैं लेकिन ओझल होने पर उसे कभी याद नहीं करते.
Avdhesh Mishra from Lucknow.